25 तेरे कारण माता-पिता आनन्दित और तेरी जननी मगन होए॥
26 हे मेरे पुत्र, अपना मन मेरी ओर लगा, और तेरी दृष्टि मेरे चाल चलन पर लगी रहे।
27 वेश्या गहिरा गड़हा ठहरती है; और पराई स्त्री सकेत कुंए के समान है।
28 वह डाकू की नाईं घात लगाती है, और बहुत से मनुष्यों को विश्वासघाती कर देती है॥
29 कौन कहता है, हाय? कौन कहता है, हाय हाय? कौन झगड़े रगड़े में फंसता है? कौन बक बक करता है? किस के अकारण घाव होते हैं? किस की आंखें लाल हो जाती हैं?
30 उन की जो दाखमधु देर तक पीते हैं, और जो मसाला मिला हुआ दाखमधु ढूंढ़ने को जाते हैं।
31 जब दाखमधु लाल दिखाई देता है, और कटोरे में उसका सुन्दर रंग होता है, और जब वह धार के साथ उण्डेला जाता है, तब उस को न देखना।