20 और उसको अपनी भेड़ों की ऊन के कपड़े न दिए हों, और उसने गर्म हो कर मुझे आशीर्वाद न दिया हो;
21 वा यदि मैं ने फाटक में अपने सहायक देख कर अनाथों के मारने को अपना हाथ उठाया हो,
22 तो मेरी बांह पखौड़े से उखड़ कर गिर पड़े, और मेरी भुजा की हड्डी टूट जाए।
23 क्योंकि ईश्वर के प्रताप के कारण मैं ऐसा नहीं कर सकता था, क्योंकि उसकी ओर की विपत्ति के कारण मैं भयभीत हो कर थरथराता था।
24 यदि मैं ने सोने का भरोसा किया होता, वा कुन्दन को अपना आसरा कहा होता,
25 वा अपने बहुत से धन वा अपनी बड़ी कमाई के कारण आनन्द किया होता,
26 वा सूर्य को चमकते वा चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर