अय्यूब 31:25-31 HHBD

25 वा अपने बहुत से धन वा अपनी बड़ी कमाई के कारण आनन्द किया होता,

26 वा सूर्य को चमकते वा चन्द्रमा को महाशोभा से चलते हुए देखकर

27 मैं मन ही मन मोहित हो गया होता, और अपने मुंह से अपना हाथ चूम लिया होता;

28 तो यह भी न्यायियों से दण्ड पाने के योग्य अधर्म का काम होता; क्योंकि ऐसा कर के मैं ने सर्वश्रेष्ट ईश्वर का इनकार किया होता।

29 यदि मैं अपने बैरी के नाश से आनन्दित होता, वा जब उस पर विपत्ति पड़ी तब उस पर हंसा होता;

30 ( परन्तु मैं ने न तो उसकी शाप देते हुए, और न उसके प्राणदण्ड की प्रार्थना करते हुए अपने मुंह से पाप किया है);

31 यदि मेरे डेरे के रहने वालों ने यह न कहा होता, कि ऐसा कोई कहां मिलेगा, जो इसके यहां का मांस खाकर तृप्त न हुआ हो?