11 क्या कछार की घास पानी बिना बढ़ सकती है? क्या सरकणडा कीच बिना बढ़ता है?
12 चाहे वह हरी हो, और काटी भी न गई हो, तौभी वह और सब भांति की घास से पहिले ही सूख जाती है।
13 ईश्वर के सब बिसराने वालों की गति ऐसी ही होती है और भक्तिहीन की आशा टूट जाती है।
14 उसकी आश का मूल कट जाता है; और जिसका वह भरोसा करता है, वह मकड़ी का जाला ठहराता है।
15 चाहे वह अपने घर पर टेक लगाए परन्तु वह न ठहरेगा; वह उसे दृढ़ता से थांभेगा परन्तु वह स्थिर न रहेगा।
16 वह घाम पाकर हरा भरा हो जाता है, और उसकी डालियां बगीचे में चारों ओर फैलती हैं।
17 उसकी जड़ कंकरों के ढेर में लिपटी हुई रहती है, और वह पत्थर के स्थान को देख लेता है।