13 कोई भी मन्नत वा शपथ क्यों न हो, जिस से उस स्त्री ने अपने जीव को दु:ख देने की वाचा बान्धी हो, उसको उसका पति चाहे तो दृढ़ करे, और चाहे तो तोड़े;
14 अर्थात यदि उसका पति दिन प्रति दिन उससे कुछ भी न कहे, तो वह उसको सब मन्नतें आदि बन्धनों को जिस से वह बन्धी हो दृढ़ कर देता है; उसने उन को दृढ़ किया है, क्योंकि सुनने के दिन उसने कुछ नहीं कहा।
15 और यदि वह उन्हें सुनकर पीछे तोड़ दे, तो अपनी स्त्री के अधर्म का भार वही उठाएगा।
16 पति पत्नी के बीच, और पिता और उसके घर मे रहती हुई कुंवारी बेटी के बीच, जिन विधियों की आज्ञा यहोवा ने मूसा को दी वे ये ही हैं॥