12 यदि तू ऐसा मनुष्य देखे जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान बनता हो, तो उस से अधिक आशा मूर्ख ही से है।
13 आलसी कहता है, कि मार्ग में सिंह है, चौक में सिंह है!
14 जैसे किवाड़ अपनी चूल पर घूमता है, वैसे ही आलसी अपनी खाट पर करवटें लेता है।
15 आलसी अपना हाथ थाली में तो डालता है, परन्तु आलस्य के कारण कौर मुंह तक नहीं उठाता।
16 आलसी अपने को ठीक उत्तर देने वाले सात मनुष्यों से भी अधिक बुद्धिमान समझता है।
17 जो मार्ग पर चलते हुए पराये झगड़े में विघ्न डालता है, सो वह उसके समान है, जो कुत्ते को कानों से पकड़ता है।
18 जैसा एक पागल जो जंगली लकडिय़ां और मृत्यु के तीर फेंकता है,