1 हे मेरे पुत्र, मेरी बातों को माना कर, और मेरी आज्ञाओं को अपने मन में रख छोड़।
2 मेरी आज्ञाओं को मान, इस से तू जीवित रहेगा, और मेरी शिक्षा को अपनी आंख की पुतली जान;
3 उन को अपनी उंगलियों में बान्ध, और अपने हृदय की पटिया पर लिख ले।
4 बुद्धि से कह कि, तू मेरी बहिन है, और समझ को अपनी साथिन बना;