21 जवान सिंह अहेर के लिये गरजते हैं, और ईश्वर से अपना आहार मांगते हैं।
22 सूर्य उदय होते ही वे चले जाते हैं और अपनी मांदों में जा बैठते हैं।
23 तब मनुष्य अपने काम के लिये और सन्ध्या तक परिश्रम करने के लिये निकलता है।
24 हे यहोवा तेरे काम अनगिनित हैं! इन सब वस्तुओं को तू ने बुद्धि से बनाया है; पृथ्वी तेरी सम्पत्ति से परिपूर्ण है।
25 इसी प्रकार समुद्र बड़ा और बहुत ही चौड़ा है, और उस में अनगिनित जलचर जीव- जन्तु, क्या छोटे, क्या बड़े भरे पड़े हैं।
26 उस में जहाज भी आते जाते हैं, और लिव्यातान भी जिसे तू ने वहां खेलने के लिये बनाया है॥
27 इन सब को तेरा ही आसरा है, कि तू उनका आहार समय पर दिया करे।