1 ममैं यहोवा की दोहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूं,
2 मैं अपने शोक की बातें उस से खोलकर कहता, मैं अपना संकट उस के आगे प्रगट करता हूं।
3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जाने वाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फन्दा लगाया।
4 मैं ने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता है। मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है॥