26 इस कारण उन्होंने अश्शूर के राजा के पास कहला भेजा कि जो जातियां तू ने उनके देशों से निकाल कर शोमरोन के नगरों में बसा दी हैं, वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानतीं, उस से उसने उसके मध्य सिंह भेजे हैं जो उन को इसलिये मार डालते हैं कि वे उस देश के देवता की रीति नहीं जानते।
27 तब अश्शूर के राजा ने आज्ञा दी, कि जिन याजकों को तुम उस देश से ले आए, उन में से एक को वहां पहुंचा दो; और वह वहां जा कर रहे, और वह उन को उस देश के देवता की रीति सिखाए।
28 तब जो याजक शोमरोन से निकाले गए थे, उन में से एक जा कर बेतेल में रहने लगा, और उन को सिखाने लगा कि यहोवा का भय किस रीति से मानना चाहिये।
29 तौभी एक एक जाति के लोगों ने अपने अपने निज देवता बना कर, अपने अपने बसाए हुए नगर में उन ऊंचे स्थानों के भवनों में रखा जो शोमरोनियों ने बसाए थे।
30 बाबेल के मनुष्यों ने तो सुक्कोतबनोत को, कूत के मनुष्यों ने नेर्गल को, हमात के मनुष्यों ने अशीमा को,
31 और अव्वियों ने निभज, और तर्त्ताक को स्थापित किया; और सपवैंमी लोग अपने बेटों को अद्रम्मेलेक और अनम्मेलेक नाम सपवैंम के देवताओं के लिये होम कर के चढ़ाने लगे।
32 यों वे यहावा का भय मानते तो थे, परन्तु सब प्रकार के लोगों में से ऊंचे स्थानों के याजक भी ठहरा देते थे, जो ऊंचे स्थानों के भवनों में उनके लिये बलि करते थे।