6 इसलिये हे भाइयों, यदि मैं तुम्हारे पास आकर अन्य अन्य भाषा में बातें करूं, और प्रकाश, या ज्ञान, या भविष्यद्वाणी, या उपदेश की बातें तुम से न कहूं, तो मुझ से तुम्हें क्या लाभ होगा?
7 इसी प्रकार यदि निर्जीव वस्तुएं भी, जिन से ध्वनि निकलती है जैसे बांसुरी, या बीन, यदि उन के स्वरों में भेद न हो तो जो फूंका या बजाया जाता है, वह क्योंकर पहिचाना जाएगा?
8 और यदि तुरही का शब्द साफ न हो तो कौन लड़ाई के लिये तैयारी करेगा?
9 ऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है वह क्योंकर समझा जाएगा? तुम तो हवा से बातें करने वाले ठहरोगे।
10 जगत में कितने ही प्रकार की भाषाएं क्यों न हों, परन्तु उन में से कोई भी बिना अर्थ की न होगी।
11 इसलिये यदि मैं किसी भाषा का अर्थ न समझूं, तो बोलने वाले की दृष्टि में परदेशी ठहरूंगा; और बोलने वाला मेरे दृष्टि में परदेशी ठहरेगा।
12 इसलिये तुम भी जब आत्मिक वरदानों की धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो।