10 वे तो अपनी अपनी समझ के अनुसार थोड़े दिनों के लिये ताड़ना करते थे, पर यह तो हमारे लाभ के लिये करता है, कि हम भी उस की पवित्रता के भागी हो जाएं।
11 और वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।
12 इसलिये ढीले हाथों और निर्बल घुटनों को सीधे करो।
13 और अपने पांवों के लिये सीधे मार्ग बनाओ, कि लंगड़ा भटक न जाए, पर भला चंगा हो जाए॥
14 सब से मेल मिलाप रखने, और उस पवित्रता के खोजी हो जिस के बिना कोई प्रभु को कदापि न देखेगा।
15 और ध्यान से देखते रहो, ऐसा न हो, कि कोई परमेश्वर के अनुग्रह से वंचित रह जाए, या कोई कड़वी जड़ फूट कर कष्ट दे, और उसके द्वारा बहुत से लोग अशुद्ध हो जाएं।
16 ऐसा न हो, कि कोई जन व्यभिचारी, कष्ट ऐसाव की नाईं अधर्मी हो, जिस न एक बार के भोजन के बदले अपने पहिलौठे होने का पद बेच डाला।