3 अपने स्वामी के बेटों में से जो सब से अच्छा और योग्य हो, उसको छांट कर, उसके पिता की गद्दी पर बैठाओ, और अपने स्वामी के घराने के लिये लड़ो।
4 परंतु वे निपट डर गए, और कहने लगे, उसके साम्हने दो राजा भी ठहर न सके, फिर हम कहां ठहर सकेंगे?
5 तब जो राज घराने के काम पर था, और जो नगर के ऊपर था, उन्होंने और पुरनियों और लड़के-बालों के पालने वालों ने येहू के पास यों कहला भेजा, कि हम तेरे दास हैं, जो कुछ तू हम से कहे, उसे हम करेंगे; हम किसी को राजा न बनाएंगे, जो तुझे भाए वहीं कर।
6 तब उसने दूसरा पत्र लिख कर उनके पास भेजा, कि यदि तुम मेरी ओर के हो और मेरी मानो, तो अपने स्वामी के बेटों-पोतों के सिर कटवाकर कल इसी समय तक मेरे पास यिज्रैल में हाजिर होना। राजपुत्र तो जो सत्तर मतुष्य थे, वे उस नगर के रईसों के पास पलते थे।
7 यह पत्र उनके हाथ लगते ही, उन्होंने उन सत्तरों राजपुत्रों को पकड़ कर मार डाला, और उनके सिर टोकरियों में रख कर यिज्रैल को उसके पास भेज दिए।
8 और एक दूत ने उसके पास जा कर बता दिया, कि राजकुमारों के सिर आ गए हैं। तब उसने कहा, उन्हें फाटक में दो ढेर कर के बिहान तक रखो।
9 बिहान को उसने बाहर जा खड़े हो कर सब लोगों से कहा, तुम तो निर्दोष हो, मैं ने अपने स्वामी से राजद्रोह की गोष्ठी कर के उसे घात किया, परन्तु इन सभों को किस ने मार डाला?