1 मेरा प्राण जीवित रहने से उकताता है; मैं स्वतंत्रता पूर्वक कुड़कुड़ाऊंगा; और मैं अपने मन की कड़वाहट के मारे बातें करूंगा।
2 मैं ईश्वर से कहूंगा, मुझे दोषी न ठहरा; मुझे बता दे, कि तू किस कारण मुझ से मुक़द्दमा लड़ता है?
3 क्या तुझे अन्धेर करना, और दुष्टों की युक्ति को सफल कर के अपने हाथों के बनाए हुए को निकम्मा जानना भला लगता है?
4 क्या तेरी देहधारियों की सी आंखें है? और क्या तेरा देखना मनुष्य का सा है?
5 क्या तेरे दिन मनुष्य के दिन के समान हैं, वा तेरे वर्ष पुरुष के समयों के तुल्य हैं,
6 कि तू मेरा अधर्म ढूंढ़ता, और मेरा पाप पूछता है?