21 क्योंकि जब उसके महीनों की गिनती कट चुकी, तो अपने बाद वाले घराने से उसका क्या काम रहा।
22 क्या ईश्वर को कोई ज्ञान सिखाएगा? वह तो ऊंचे पद पर रहने वालों का भी न्याय करता है।
23 कोई तो अपने पूरे बल में बड़े चैन और सुख से रहता हुआ मर जाता है।
24 उसकी दोहनियां दूध से और उसकी हड्डियां गूदे से भरी रहती हैं।
25 और कोई अपने जीव में कुढ़ कुढ़कर बिना सुख भोगे मर जाता है।
26 वे दोनोंबराबर मिट्टी में मिल जाते हैं, और कीड़े उन्हें ढांक लेते हैं।
27 देखो, मैं तुम्हारी कल्पनाएं जानता हूँ, और उन युक्तियों को भी, जो तुम मेरे विषय में अन्याय से करते हो।