19 कूश देश के पद्मराग उसके तुल्य नहीं ठहर सकते; और न उस से चोखे कुन्दन की बराबरी हो सकती है।
20 फिर बुद्धि कहां मिल सकती है? और समझ का स्थान कहां?
21 वह सब प्राणियों की आंखों से छिपी है, और आकाश के पक्षियों के देखने में नहीं आती।
22 विनाश ओर मृत्यु कहती हैं, कि हमने उसकी चर्चा सुनी है।
23 परन्तु परमेश्वर उसका मार्ग समझता है, और उसका स्थान उसको मालूम है।
24 वह तो पृथ्वी की छोर तक ताकता रहता है, और सारे आकाशमण्डल के तले देखता भालता है।
25 जब उसने वायु का तौल ठहराया, और जल को नपुए में नापा,