10 प्रधान लोग चुप रहते थे और उनकी जीभ तालू से सट जाती थी।
11 क्योंकि जब कोई मेरा समाचार सुनता, तब वह मुझे धन्य कहता था, और जब कोई मुझे देखता, तब मेरे विषय साक्षी देता था;
12 क्योंकि मैं दोहाई देने वाले दीन जन को, और असहाय अनाथ को भी छुड़ाता था।
13 जो नाश होने पर था मुझे आशीर्वाद देता था, और मेरे कारण विधवा आनन्द के मारे गाती थी।
14 मैं धर्म को पहिने रहा, और वह मुझे ढांके रहा; मेरा न्याय का काम मेरे लिये बागे और सुन्दर पगड़ी का काम देता था।
15 मैं अन्धों के लिये आंखें, और लंगड़ों के लिये पांव ठहरता था।
16 दरिद्र लोगों का मैं पिता ठहरता था, और जो मेरी पहिचान का न था उसके मुक़द्दमे का हाल मैं पूछताछ कर के जान लेता था।