13 परन्तु वे जो मन ही मन भक्तिहीन हो कर क्रोध बढ़ाते, और जब वह उन को बान्धता है, तब भी दोहाई नहीं देते,
14 वे जवानी में मर जाते हैं और उनका जीवन लूच्चों के बीच में नाश होता है।
15 वह दुखियों को उनके दु:ख से छुड़ाता है, और उपद्रव में उनका कान खोलता है।
16 परन्तु वह तुझ को भी क्लेश के मुंह में से निकाल कर ऐसे चौड़े स्थान में जहां सकेती नहीं है, पहुंचा देता है, और चिकना चिकना भोजन तेरी मेज पर परोसता है।
17 परन्तु तू ने दुष्टों का सा निर्णय किया है इसलिये निर्णय और न्याय तुझ से लिपटे रहते है।
18 देख, तू जलजलाहट से उभर के ठट्ठा मत कर, और न प्रायश्चित्त को अधिक बड़ा जान कर मार्ग से मुड़।
19 क्या तेरा रोना वा तेरा बल तुझे दु:ख से छुटकारा देगा?