12 फिर उसने सात दिन और ठहरकर उसी कबूतरी को उड़ा दिया; और वह उसके पास फिर कभी लौट कर न आई।
13 फिर ऐसा हुआ कि छ: सौ एक वर्ष के पहिले महीने के पहिले दिन जल पृथ्वी पर से सूख गया। तब नूह ने जहाज की छत खोल कर क्या देखा कि धरती सूख गई है।
14 और दूसरे महीने के सताईसवें दिन को पृथ्वी पूरी रीति से सूख गई॥
15 तब परमेश्वर ने, नूह से कहा,
16 तू अपने पुत्रों, पत्नी, और बहुओं समेत जहाज में से निकल आ।
17 क्या पक्षी, क्या पशु, क्या सब भांति के रेंगने वाले जन्तु जो पृथ्वी पर रेंगते हैं, जितने शरीरधारी जीवजन्तु तेरे संग हैं, उस सब को अपने साथ निकाल ले आ, कि पृथ्वी पर उन से बहुत बच्चे उत्पन्न हों; और वे फूलें-फलें, और पृथ्वी पर फैल जाएं।
18 तब नूह, और उसके पुत्र, और पत्नी, और बहुएं, निकल आईं: