1 बुद्धि ने अपना घर बनाया और उसके सातों खंभे गढ़े हुए हैं।
2 उस ने अपने पशु वध कर के, अपने दाखमधु में मसाला मिलाया है, और अपनी मेज़ लगाई है।
3 उस ने अपनी सहेलियां, सब को बुलाने के लिये भेजी है; वह नगर के ऊंचे स्थानों की चोटी पर पुकारती है,
4 जो कोई भोला हे वह मुड़ कर यहीं आए! और जो निर्बुद्धि है, उस से वह कहती है,