32 और सभा में उसको सराहें, और पुरनियों के बैठक में उसकी स्तुति करें॥
33 वह नदियों को जंगल बना डालता है, और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है।
34 वह फलवन्त भूमि को नोनी करता है, यह वहां के रहने वालों की दुष्टता के कारण होता है।
35 वह जंगल को जल का ताल, और निर्जल देश को जल के सोते कर देता है।
36 और वहां वह भूखों को बसाता है, कि वे बसने के लिये नगर तैयार करें;
37 और खेती करें, और दाख की बारियां लगाएं, और भांति भांति के फल उपजा लें।
38 और वह उन को ऐसी आशीष देता है कि वे बहुत बढ़ जाते हैं, और उनके पशुओं को भी वह घटने नहीं देता॥