127 इस कारण मैं तेरी आज्ञाओं को सोने से वरन कुन्दन से भी अधिक प्रिय मानता हूं।
128 इसी कारण मैं तेरे सब उपदेशों को सब विषयों में ठीक जानता हूं; और सब मिथ्या मार्गों से बैर रखता हूं॥
129 तेरी चितौनियां अनूप हैं, इस कारण मैं उन्हें अपने जी से पकड़े हुए हूं।
130 तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है; उससे भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं।
131 मैं मुंह खोल कर हांफने लगा, क्योंकि मैं तेरी आज्ञाओं का प्यासा था।
132 जैसी तेरी रीति अपने नाम की प्रीति रखने वालों से है, वैसे ही मेरी ओर भी फिर कर मुझ पर अनुग्रह कर।
133 मेरे पैरों को अपने वचन के मार्ग पर स्थिर कर, और किसी अनर्थ बात को मुझ पर प्रभुता न करने दे।