भजन संहिता 64:1-7 HHBD

1 हे परमेश्वर, जब मैं तेरी दोहाई दूं, तब मेरी सुन; शत्रु के उपजाए हुए भय के समय मेरे प्राण की रक्षा कर।

2 कुकर्मियों की गोष्ठी से, और अनर्थकारियों के हुल्लड़ से मेरी आड़ हो।

3 उन्होंने अपनी जीभ को तलवार की नाईं तेज किया है, और अपने कड़वे वचनों के तीरों को चढ़ाया है;

4 ताकि छिपकर खरे मनुष्य को मारें; वे निडर होकर उसको अचानक मारते भी हैं।

5 वे बुरे काम करने को हियाव बान्धते हैं; वे फन्दे लगाने के विषय बातचीत करते हैं; और कहते हैं, कि हम को कौन देखेगा?

6 वे कुटिलता की युक्ति निकालते हैं; और कहते हैं, कि हम ने पक्की युक्ति खोजकर निकाली है। क्योंकि मनुष्य का मन और हृदय अथाह हैं!

7 परन्तु परमेश्वर उन पर तीर चलाएगा; वे अचानक घायल हो जाएंगे।