21 और लोगों ने मेरे खाने के लिये इन्द्रायन दिया, और मेरी प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिलाया॥
22 उनका भोजन उनके लिये फन्दा हो जाए; और उनके सुख के समय जाल बन जाए।
23 उनकी आंखों पर अन्धेरा छा जाए, ताकि वे देख न सकें; और तू उनकी कटि को निरन्तर कंपाता रह।
24 उनके ऊपर अपना रोष भड़का, और तेरे क्रोध की आंच उन को लगे।
25 उनकी छावनी उजड़ जाए, उनके डेरों में कोई न रहे।
26 क्योंकि जिस को तू ने मारा, वे उसके पीछे पड़े हैं, और जिन को तू ने घायल किया, वे उनकी पीड़ा की चर्चा करते हैं।
27 उनके अधर्म पर अधर्म बढ़ा; और वे तेरे धर्म को प्राप्त न करें।