20 अपनी वाचा की सुधि ले; क्योंकि देश के अन्धेरे स्थान अत्याचार के घरों से भरपूर हैं।
21 पिसे हुए जन को निरादर होकर लौटना न पड़े; दीन दरिद्र लोग तेरे नाम की स्तुति करने पाएं॥
22 हे परमेश्वर उठ, अपना मुकद्दमा आप ही लड़; तेरी जो नामधराई मूढ़ से दिन भर होती रहती है, उसे स्मरण कर।
23 अपने द्रोहियों का बड़ा बोल न भूल, तेरे विरोधियों का कोलाहल तो निरन्तर उठता रहता है।