27 और पापबलि का बछड़ा और पापबलि का बकरा भी जिनका लोहू पवित्रस्थान में प्रायश्चित्त करने के लिये पहुंचाया जाए वे दोनों छावनी से बाहर पहुंचाए जाएं; और उनका चमड़ा, मांस, और गोबर आग में जला दिया जाए।
28 और जो उन को जलाए वह अपने वस्त्रों को धोए, और जल से स्नान करे, और इसके बाद वह छावनी में प्रवेश करने पाए॥
29 और तुम लोगों के लिये यह सदा की विधि होगी कि सातवें महीने के दसवें दिन को तुम अपने अपने जीव को दु:ख देना, और उस दिन कोई, चाहे वह तुम्हारे निज देश को हो चाहे तुम्हारे बीच रहने वाला कोई पर देशी हो, कोई भी किसी प्रकार का काम काज न करे;
30 क्योंकि उस दिन तुम्हें शुद्ध करने के लिये तुम्हारे निमित्त प्रायश्चित्त किया जाएगा; और तुम अपने सब पापों से यहोवा के सम्मुख पवित्र ठहरोगे।
31 यह तुम्हारे लिये परमविश्राम का दिन ठहरे, और तुम उस दिन अपने अपने जीव को दु:ख देना; यह सदा की विधि है।
32 और जिसका अपने पिता के स्थान पर याजक पद के लिये अभिषेक और संस्कार किया जाए वह याजक प्रायश्चित्त किया करे, अर्थात वह सनी के पवित्र वस्त्रों को पहिनकर,
33 पवित्रस्थान, और मिलापवाले तम्बू, और वेदी के लिये प्रायश्चित्त करे; और याजकों के और मण्डली के सब लोगों के लिये भी प्रायश्चित्त करे।