32 चाहे वह दु:ख भी दे, तौभी अपनी करुणा की बहुतायत के कारण वह दया भी करता है;
33 क्योंकि वह मनुष्यों को अपने मन से न तो दबाता है और न दु:ख देता है।
34 पृथ्वी भर के बंधुओं को पांव के तले दलित करना,
35 किसी पुरुष का हक़ परमप्रधान के साम्हने मारना,
36 और किसी मनुष्य का मुक़द्दमा बिगाड़ना, इन तीन कामों को यहोवा देख नहीं सकता।
37 यदि यहोवा ने आज्ञा न दी हो, तब कौन है कि वचन कहे और वह पूरा हो जाए?
38 विपत्ति और कल्याण, क्या दोनों परमप्रधान की आज्ञा से नहीं होते?