सभोपदेशक 9:1-5 HHBD

1 यह सब कुछ मैं ने मन लगाकर विचारा कि इन सब बातों का भेद पाऊं, कि किस प्रकार धर्मी और बुद्धिमान लोग और उनके काम परमेश्वर के हाथ में हैं; मनुष्य के आगे सब प्रकार की बातें हैं परन्तु वह नहीं जानता कि वह प्रेम है व बैर।

2 सब बातें सभों को एक समान होती है, धर्मी हो या दुष्ट, भले, शुद्ध या अशुद्ध, यज्ञ करने और न करने वाले, सभों की दशा एक ही सी होती है। जैसी भले मनुष्य की दशा, वैसी ही पापी की दशा; जैसी शपथ खाने वाले की दशा, वैसी ही उसकी जो शपथ खाने से डरता है।

3 जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है उस में यह एक दोष है कि सब लोगों की एक सी दशा होती है; और मनुष्यों के मनों में बुराई भरी हुई है, और जब तक वे जीवित रहते हैं उनके मन में बावलापन रहता है, और उसके बाद वे मरे हुओं में जा मिलते हैं।

4 उसको परन्तु जो सब जीवतों में है, उसे आशा है, क्योंकि जीवता कुत्ता मरे हुए सिंह से बढ़कर है।

5 क्योंकि जीवते तो इतना जानते हैं कि वे मरेंगे, परन्तु मरे हुए कुछ भी नहीं जानते, और न उन को कुछ और बदला मिल सकता है, क्योंकि उनका स्मरण मिट गया है।