27 वे चक्कर खाते, और मत वाले की नाईं लड़खड़ाते हैं, और उनकी सारी बुद्धि मारी जाती है।
28 तब वे संकट में यहोवा की दोहाई देते हैं, और वह उन को सकेती से निकालता है।
29 वह आंधी को थाम देता है और तरंगें बैठ जाती हैं।
30 तब वे उनके बैठने से आनन्दित होते हैं, और वह उन को मन चाहे बन्दर स्थान में पहुंचा देता है।
31 लोग यहोवा की करूणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिये करता है, उसका धन्यवाद करें।
32 और सभा में उसको सराहें, और पुरनियों के बैठक में उसकी स्तुति करें॥
33 वह नदियों को जंगल बना डालता है, और जल के सोतों को सूखी भूमि कर देता है।